असभ्य हो जाऊं !
असभ्य हो जाऊं !
क्या मिला सभ्य
होकर इंसानों को
कई बार ये सोचता हूँ
फिर से जंगली हो जाऊँ
और महसूस करूँ एक बार
फिर से घने पीपल की छांव
ये सभ्यता का चोला उतार कर
बरगद सी लम्बी जड़ें फैलाऊं
और लपेट लाऊँ उसमे तुम्हें
और फूस की एक झोपड़ी
बना उसके एक कोने में
उगाऊं तुलसी का पौधा
और रखूँ उसके किनारों पर
एक दीपक जिसको आकर
तुम जलाओ सुबह शाम
और तुम्हें साथ लेकर लौटूँ
इन हरी हरी घांसों पर
और एक बार फिर से
असभ्य हो जाऊं !
