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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Fantasy

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

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अर्थ विमर्श

अर्थ विमर्श

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वर्तमान की परिभाषित 

परिपाटी में

दिव्य अंगों से 

सुसज्जित हो कोई 

तो दिव्यांग, कहाया जाएगा

व्याकरण की 

परिधि में उसका

यही विवरण 

दर्ज़ हो जायेगा।


संधि द्वय दिव्य + अंग की 

युति दिव्यांग 

रूपेण सार्थक 

हो पायेगा  

अल्प ज्ञान व् 

अनुभव मेरा

ये शब्द का विग्रह 

ऐसे ही दर्शाएगा।


सृष्टि के रचना कार ने 

जो भी सृजन किया

सोचा या चाहा होगा

इन दिव्य अंग सन्धानों का


उसने अपनी सर्वज्ञता के

भाव रूपेण ज्ञान का

कुछ न कुछ तो

गुण धर्म गहा होगा।


अल्प मति हम प्राणियों ने

मूढ़ आचरण के चलते

प्रभु उपार्जित 

दिव्यांग जन में 

उपस्थित विसंगतियों को

स्वाध्याय अनुवृत्त 

फिर परावर्तित कर लिया होगा।


चलो छोड़िये किसने

क्या सोचा क्या न सोचा

तुम भी तो कुछ अपनी

मति खुजाओ ना

कर्म के मर्म का 

गीता के धर्म [ न्याय] का


कुछ तो तर्क बताओ ना ।


मानवता से विशाल हृदय में

सहानुभूति के सम्मान 

का दीपक जला 

दिव्य [ प्रभु ] को कर नमन

अपना शीश नवाओ ना 


जो भी उसने रचा, हृदय से

उस प्रसाद तुल्य सृजन को 

कृत कृत धन्य हो जाओ ना।। 


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