अर्जी.. रब के नाम
अर्जी.. रब के नाम
खेल अजीब है ख्वाहिशों का,
हर मन में यह पलती है,
जगा के उम्मीदों की रोशनी,
बस चलने को कहती है।
कुछ ख्वाहिशें जग को जीतने की
कुछ नयी दुनिया सजाने की,
कुछ, पा लेने की है कोशिशें,
कुछ है, नया कुछ, कर-गुजर जाने की।।
एक उम्मीद में बंधी है सब,
ना जाने कब होगी पूरी
मैने सुना था, रब सबका
हर एक की आस पूरी करता है,
फिर क्या था, सबके निमित्त
रब को हमने भी अर्जी लिख डाली,
अब दुविधा थी, ये हो कैसे?
रब तक अर्जी पहुँचे कैसे?
कागज की पताका बना के फिर
आसमान में उड़ा डाली।
मन की कल्पना के जैसे पंख खुले,
पताका हमारी चाँद के पार गयी,
मिल गयी रब को अर्जी...
पूरी हो जायेगी अब ख्वाहिशें सभी।।
