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ADITYA MISHRA

Tragedy

3  

ADITYA MISHRA

Tragedy

अप्रेषित पत्र

अप्रेषित पत्र

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भावनाएं मन में भरी थी

पर कभी मैं बता न सका,

प्रेम में जो खत लिखा था

कभी द्वार तेरे वो न जा सका।


स्वप्न में जो बातें कही थीं

कोरे पन्नों पे सब लिखी थी,

पर मिलन की चाह में कहीं मित्रता न टूट जाए

इस भय से मैंने पैर अपने पीछे किये थे।


हृदय के हर कोने में आज भी तुम हो बसती,

तुम्हें याद कर कलम मेरी आज भी है श्रृंगार लिखती।

पर प्रेम के सागर में उतर के ख़त जो मैंने लिखे थे,

नियति उनकी कैसी थी कभी द्वार तेरे वो न जा सके।


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