अपनी स्वतंत्रता
अपनी स्वतंत्रता
जो कभी न हुआ हो ऐसा प्यार करते हैं,
खुद में उतरकर फिर से वही रार करते हैं,
कहीं जो प्रेम पा जाये तो तिरस्कार करते हैं
अंतस में उमड़े क्लेश को अंगीकार करते हैं
ना एक दूसरे के भावों का प्रतिकार करते हैं
अपनी-अपनी स्वतंत्रता...स्वीकार करते हैं !
यूँ कलह उन्मादित होकर खुद चोट नहीं पाती
कुछ खुश्क यादों तले वो दबके ही सो जाती
उस खुदा की खुदाई को...नमस्कार करते हैं
उन किरकिराती यादों का बहिष्कार करते है
ना एक दूसरे के भावों का प्रतिकार करते हैं
अपनी-अपनी स्वतंत्रता...स्वीकार करते हैं!
कि वो क्लेश भी असीमित टीस ढोता होगा
उसमें हर वक़्त कहीं बेहिसाब दर्द रोता होगा
हाथों की लकीरें भी धोखे न जाने क्यों करती
बक्साबंद एहसासों का अंतिम संस्कार करते हैं
ना एक दूसरे के भावों का प्रतिकार करते हैं
अपनी-अपनी स्वतंत्रता...स्वीकार करते हैं !