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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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गुस्से की क्या जरुरत

गुस्से की क्या जरुरत

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इतने गुस्से की क्या जरुरत

तुम्हारी उदासी में,

थोडी सी खुशी ही तो जोड़ी है।


तुम्हारे सपने को सच के थोड़ा

करीब ही तो लाया है।

इतनी चुप्पी की भी क्या जरुरत

लोकतंत्र को सम्विधान की नजर से ही तो देखा है,

सरकार सम्विधान का ही तो सपना है


इसे साकार करने में

तुम्हारी थोड़ी सी मदद ही तो की है।

इतना डरने की क्या जरुरत है

गलतियां तो सबसे होती हैं

और उन्हें तो डरना ही चाहिये

जो डराते हैं।


चलाओ न अपना ईश्वर से प्राप्त

प्रेम का सबसे सशक्त हथियार।

डर भी भाग जायेगा,

आजादी भी मिल जाएगी,

एकता भी स्थापित हो जायेगी।


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