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Jaivir Singh

Abstract

4.5  

Jaivir Singh

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विद्वानों की बहस

विद्वानों की बहस

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बहस विद्वानों की, विवादित ना हो।

तर्क संगत पर, विचार सभी के हो।

 

थोड़े ज्ञान से पूर्ण नहीं होता, ढिंढोरा ज्ञान का ना पीटिए।

ज्ञान विषय के तर्क, सुनने का दूसरे को भी मौक़ा दीजिए।

 

लंबी बहस होती है, तो ज्ञान अधूरा है।

दबाने की दूसरे को, यह तो कोशिश है।

 

सच्चा ऊपर रहेगा, हारा वो नहीं होता है।

बहस लंबी में कभी, ज्ञानी नहीं पड़ता है।

 

बहस शुद्ध विचारों पर हो, तो ज्ञान बढ़ता है।

एक बोले दूसरा ना सुने, तो ज्ञान घटता है।

 

दो विद्वानों की बहस, तीसरे ज्ञान को जन्म देती है।

स्वार्थ विद्वानों का नहीं होता, समाज की वो किरण होती है।

 

विद्वान ऐसा, जो अपने आप को दिखाता है।

समाज को वो, गलत राह पे भटकता है।

 

विद्वान तो वो है, जो समाज को नई दिशा देता है।

जलाकर अपने आपको, समाज को वो रोशन करता है।

 

नकली विद्वानों की आज, बाढ़ समाज में आई है।

पहचानें कैसे उनको, वो तो आज गली-गली में है।

 

आवाज़ को अपनी ऊपर रखकर, समाज को वो दिखाते हैं।

ज्ञानी बड़ा हमसे, समाज में अब कोई नहीं है।

 

उपदेश वो ऐसे देते हैं, जैसे वो बड़े संत ऋषि हैं।

उनके जाते ही लोग, ठहाके लगाकर हंसते हैं।

 

विद्वानों सुनो मेरी, दिखावे की विद्वानों को जरूरत नहीं है।

खुद ही विद्वान तो, भगवान को दिखाने वाला मसीहा है। 


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