शहीदों का दर्द
शहीदों का दर्द
आज़ाद वतन कर, तुम्हारे हवाले किया।
तुम मेरे इस जिगर का, ख़्याल नहीं रखते हो।
हम इस वतन के लिए, सूली पर चढ़ गए।
तुम हमारी क़ुर्बानी को, छोटी समझते हो।
वतन के लिए शहीद होना,
हमारे लिए कोई बड़ा काम नहीं था।
गोरों के गुलामों के चुंगल से निकालना,
हमारे लिए पत्थरों से टकराना था।
ग़ुलामी के नुमाइंदों ने भारत माँ को,
अपने ही घरों में जकड़कर रखा था।
गुलाम अपनी आबरू को,
गोरों के हाथों नीलाम करने में लगे हुए थे।
हम ग़ुलामों की आबरू बचाने में,
अपनी जान हथेली पर लिए खड़े थे।
भारत माँ को आज़ादी कैसे मिलती,
ग़ुलामों की फ़ौज हमारे ही घरों में थी।
अपना ईमान गिरवी रखने वाले,
भारत माँ के ग़द्दारों की बड़ी जमात खड़ी थी।
मुट्ठी भर गोरे क्या करते,
हमारे बीच ही आपस में बड़ी दरार पड़ी थी।
दरार को पाटने के लिए,
हमें क़ुर्बानी पर क़ुर्बानी देनी पड़ी थी।
हमें अपने घर के ग़ुलामों से,
मुक्ति दिलाने में फाँसी खानी पड़ी थी।
आज़ाद वतन कर, तुम्हारे हवाले किया।
तुम मेरे इस जिगर का, ख़्याल नहीं रखते हो।
हम इस वतन के लिए, सूली पर चढ़ गए।
तुम हमारी क़ुर्बानी को, छोटी समझते हो।
