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KALASH KSHETIJA ece62

Abstract

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KALASH KSHETIJA ece62

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वो दोस्त

वो दोस्त

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चले गए जिन्हें जाना था, दोस्त वो मेरे चले गए

साथ छोड़कर मेरा यूं, अब वो दोस्त चले गए;


गुम हुए है वो शायद, अपनी जिंदगी के बाजार में

बेच गए वो दोस्ती भी, उसी बीच बाजार में


रोका मैने, मनाया मैने पर वो कहा मानने वाले थे

मानने से तो खुदा भी मान जाए वो तो फिर भी इंसान थे


पर भूल गई थी मैं ये शायद की किस्मत बड़ी महान है

चले गए और लौटकर न देखा उन्होंने

पर मुझे आज भी इंतजार है।


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