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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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अपनी पगड़ी

अपनी पगड़ी

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हर कोई जीवन में चाहता है सम्मान

इसकी खातिर करने पड़ते हैं कितने काम

लोगों की खुशी की खातिर दिखावों पर न जाओ

जितनी हो हैसियत उतने ही पैर फैलाओ

वरना असलियत खुलते नहीं लगती देर

झूठी शान पाने से दूर ही रहना यार

अपनी पगड़ी होती है अपने ही हाथ।


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