अपनी जिंदगी बिताएंगे
अपनी जिंदगी बिताएंगे
अब न किसी के सामने देखेंगे,
न किसी से नज़र हम मिलाएंगे,
ख्वाबों की दुनिया में ही रहकर,
हम अपनी जिंदगी बताएंगे।
जो चली गई है उसे भूल जायेंगे,
उसकी खुशी में हम खुश रहेंगे,
तन्हाईयांँ को रात दिन सहकर,
हम अपनी जिंदगी बिताएंगे।
उसके विरह को हम अपनाएंगे,
आंखों से आंसु न हम बहाएंगे,
जीवन में कोई न था यह मानकर,
हम अपनी जिंदगी बिताएंगे।
अब उसका दिल हम न दुखाएंगे,
न उसके पर कभी हक जताएंगे,
'मुरली' यूं ही खामोशी में रहकर,
हम अपनी जिंदगी बिताएंगे।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ - गुजरात)

