अपने
अपने
क्या हो गया? क्या खो गया !
कौन सोचे, कौन जाने !
बेगाने बन जाते अपने !
और अपने बेगाने !
दोहराने इस कहानी को ?,
क्या तुम भी मिले हो मुझ से ?
अजनबी से, फिर भी देखे हुए,
कपड़े से मुंह ढके हुए !
कुछ चेहरे जाने/ पहचाने !
दर्द का मज़ाक़ बना,
मुस्कराते वो चेहरे अपने से, पर बेगाने !
चौंक जाता हूँ, स्तब्ध रह जाता हूँ !
उन बेगाने चेहरों में, तेरा चेहरा जब पाता हूं !
क्या तुम भी औरों की तरह,
अब लगे मुखौटे लगाने ??