अपने शब्दों से कह देती हूं
अपने शब्दों से कह देती हूं
सागर सी गहराई लिए
अपने भाव लिख लेती हूँ
कभी संघर्ष, कभी सफलता
जीवन की आपाधापी के बीच
सतरंगी दुनिया की सैर
शब्दों में पिरो देती हूं
ज्ञान नहीं छंदो का
भावों के संग बात कहती हूं
प्यार की रूप अनेक
बहुरूपी दुनिया को देख
दर्द भरी लिखनी से कभी कहती हूं
कभी कल्पना की ऊंची उड़ान भर
खुशी पाकर संतुष्ट मन कर लेती हूं
नहीं आती चालाकी मुझे,
नहीं जानती रिश्तों का हिसाब किताब
बस बात में अपने शब्दों से कह देती हूं
