अपने हिसाब से खेल
अपने हिसाब से खेल
सदा कोई किसी का होता नहीं
दिन भी होता है
चारों पहर कोई सोता नहीं
काम भी होते हैं जगत में
पहले कोई और था, अब कोई और,
आगे होगा कोई और
जगत में रिश्ता, सदा एक सा होता नहीं
एक तन कई रूपों में ढलता है
एक जीवन में एक जैसा कभी होता नहीं
कोई सदा नहीं हंसता कोई सदा नहीं रोता
सदा जीता भी नहीं कोई
बदलते ढंग जीवन के
हरदम अपना ही जोर सब पर होता नहीं
कभी सहना भी पड़ता है
चुप रहना भी पड़ता है
चलते चलना होता है कभी
कभी रुक जाना भी होता है
समय की नदी में कोई
नाव सदा रुकती नहीं
पलकें झुकती भी हैं, सदा ठहरती नहीं
जीवन के जंजाल, खत्म नहीं होते कभी
मरते दम तक इच्छायें रुकती नहीं कभी
कुछ ऊपर वाले पर भी छोड़ना चाहिए
अपने हिसाब से सदा खेल चलता नहीं।