अपना भी वतन उनका भी वतन
अपना भी वतन उनका भी वतन
ऐ दुश्मनों कब तक सरहद पे नफरत का बीज बोओगे
आखिर कब तक अपने बच्चों को पुस्तक के जगह बंदूक की तालीम दोगे
आज आप अपने घरों में जश्न मनाते हो
कल किसी को जिंदगानी वर्षों रोती है
चारों तरफ पसरा वीरान सा सन्नाटा नजर आया है
आज चारों ओर बस्ती मुर्दा सा नजर आया है
आज फिर आंगन में सिसकी रुदन और चीख सुनाया है
आज निमिया पेड़ तले चूड़ी तोड़ती सुहागन का फिर रोना नजर आया है
आज ये रात सदियों सी क्यों लंबी लगती है
आज एक पिता को फिर एक बेटे की घर लौटने की उम्मीद सी लगती है।
उठ उठ के खाट से खिड़की ताक रहा
बेटे के घर आने की प्रतीक्षा में वह कैसे जाग रहा
लाशों से पटी सारी धरती किसी की आँख खुली किसी की पैर कटी
किसी के मरते हाथ में माँ की तस्वीर तो किसी के हाथ में बच्चों बीबी की तस्वीर दिखी
कहीं लाचारी तो कही मातम पसरी
माँ का जागना रातों में पिता का तकना राहों में
मिट्टी देने की जैसे जगह न रही
मुर्दे बने बेटों की जैसे रेला सी लगी
अभी मासूम सा बच्चा देख रहा
चक पका चकपका हतप्रभ कैसे देख रहा
आज मैंने अपने गलियों में भूखे बच्चों को रोते देखा है
आज मैंने एक बहन की राखी कलाई से छूटते देखा है
आज मैंने एक सुहागन को सफेद साड़ी के लिबास में व्याकुल रोते देखा है
ये दोस्त कैसा गुमसुम सा खड़ा
मृत दोस्त के शव को गाड़ी में यूं देख रहा
मेरे लाल तू एक बार आँखें खोल तो दे
अंतिम बार ही सही पानी पी ही तो ले
अभी तू छोटी से हँसी ठिठोली तूने किया है
फिर क्यों आज शहीद हो कफन में पड़ा है
खाट पर शव को कैसे उठाया जा रहा है
मुझसे ये दृश्य ना देखे जा रहा है
चलती गाड़ी से उसने टाटा करके मुझे हंसाया था
अम्मा मैं फिर से आऊंगा ऐसा कह मुझे सीने से लगाया था
आज मैंने एक पिता के हाथों में एक पुत्र का अर्थी थामे देखा है
हाँ मैंने भी आज एक बेटे को अपने
पिता से अनाथ होते देखा है
चिताओं से कहरने की आवाज आई है
मेरे प्यारे भैया तुझे आखिरी बार अलविदा कहने को घड़ी आई है
अल्लाह करे कभी न हम झगड़े
भगवान ना करे हम न ना तड़पे
मेरा वतन भी आबाद रहे उनका वतन भी आबाद रहे
*****************************************
राजेश"बनारसी बाबू
उत्तर प्रदेश वाराणसी
8881488312
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना