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Shashi Dwivedi

Abstract

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Shashi Dwivedi

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अपना आशियां बनाते देखा

अपना आशियां बनाते देखा

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हर किसी को अपना

आशियाँ बनाते देखा,

खुद मे उलझकर,

तड़पकर टूटते देखा,


गमों के बीच सहमकर

हँसते देखा

हर किसी को।


जिन्दगी के बीच

लोगों को पिसते देखा,

जिन्दगी का डोर फिर भी

थामे देखा,

हर किसी को।


कभी लबों से,

कभी नजरों से

कुछ कहते कहते

रुकते देखा

हर किसी को।


कभी चलते

कभी गिरते

ठोकर खा खाकर

लोगो को कहीं जाते देखा

हर किसी को।


कभी पाते, कभी खोते

लोगों को कुछ

तलाशते देखा

हर किसी को।


दूर पहाड़ों से आती

घने जंगलों

को चीरती रोशनी को देखा

हर किसी को।


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

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