मेरे गुरु
मेरे गुरु


नन्हा सा जीवन लेकर
जब इस दुनिया में आयी तो,
सब कुछ अनजाना सा था
सब कुछ बेगाना सा था
जब इस दुनिया में आई तो।।
प्रथम गुरु बन मेरी माँ,
माँ भी कहना माँ से सीखा।
चलना, गिरना
गिर के सम्हलना ,
जीवन के डग पर
डगमग डगमग,
उँगली पकड़कर आगे बढ़ना,
धैर्य, सहनशील और दया
ये सब मैने माँ से ही सीखा।।
बिना जताए, बिना बताये
जो रखता है ख्याल मेरा,
सीधी बातें, सच्ची बातें
करता है अब कौन यहाँ?
ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और सत्य
पाठ ये पापा से ही सीखा।।
विषयों और नैतिकता का पाठ
जिन गुरुओं से सीखा
शत शत नमन
सब गुरुओं को
जिनसे मैंने कुछ भी सीखा।।