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Shashi Dwivedi

Abstract

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Shashi Dwivedi

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मत डरो की वीर हो

मत डरो की वीर हो

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मत डरो कि वीर हो

बिल्कुल संवेदनहीन हो

गाय, मुर्गे,बकरी

बेजुबान पक्षियों तक को मार

खाते हो।


आगे आओ सूप पीयो

स्वादिष्ट पक्षियों के,

जानवरों के

मत डरो कि वीर हो

बिल्कुल संवेदनहीन हो


पहुंच चुके हो चाँद पर

और मंगल पर भी तो

मिसाइल,

परमाणु बम भी है

पहुँचा दो अन्य ग्रह पर

उनको भी अस्वच्छ कर दो

कर दो नष्ट भ्रष्ट सब


प्रकृति के हर अंश को

मत डरो कि वीर हो

बिल्कुल संवेदन हींन हो

डर रहे जुकाम से

और हल्के बुखार से


तुम बुद्धिमान जीव हो

और वो कड़ी है बस

नरसिंह रूप सा नही,

जीव और निर्जीव की

इतना तुच्छ,

इतना सूक्ष्म

मस्तिष्क भी नहीं


बिन अंग का प्रहार है

मात्र कुछ कणों का

छोटा सा संहार है


रूको जरा मनन करो,

क्या आ रहा है काम अब

मनन करो

मनन करो

रुको प्रकृति से जुड़ों,

प्रकृति से न युद्ध छेड़ो,

मत डरो की वीर हो

पर संवेदनशील बनो।


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