आता कहाँ??
आता कहाँ??
जड़ों ने बाँट लिए
जब अपने हिस्से की डाली
उन डालीयों का दोष क्या
जिन्होंने कलियों को
सम्हालने की तरकीबें निकाली
दगाबाज
जिंदगी जीना सभी चाहते
पर आता कहाँ
बादल सा बरसना
सबको सम रसता में भिगोना
हवायों सा बहना
सबको छू के जाना
सूरज सा चमकना
झोपड़ी सा इमारतों को भी
रोशनी से भरना
दरिया सा बहना
सबकी प्यास बुझाना
प्रकृति के ही हैं हिस्से सभी
प्रकृति के ही नियमों को सीखा कहाँ
प्रकृति से ही जुड़ना
आता कहाँ ?
