STORYMIRROR

Shashi Dwivedi

Abstract

4  

Shashi Dwivedi

Abstract

आता कहाँ??

आता कहाँ??

1 min
356

जड़ों ने बाँट लिए

जब अपने हिस्से की डाली

उन डालीयों का दोष क्या

जिन्होंने कलियों को 


सम्हालने की तरकीबें निकाली

दगाबाज

जिंदगी जीना सभी चाहते

पर आता कहाँ

बादल सा बरसना

सबको सम रसता में भिगोना


हवायों सा बहना

सबको छू के जाना

सूरज सा चमकना

झोपड़ी सा इमारतों को भी

रोशनी से भरना


दरिया सा बहना

सबकी प्यास बुझाना

प्रकृति के ही हैं हिस्से सभी

प्रकृति के ही नियमों को सीखा कहाँ

प्रकृति से ही जुड़ना

आता कहाँ ?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract