अन्तिम
अन्तिम
उंगली पकड़कर अक्सर
मां चलना सिखाती है
हाथ पकड़कर मां
लिखना भी सिखाती है
सस्वर उच्चारण के साथ
मां पढ़ना सिखाती है
अपने हाथ से खिला, निवाला
मां खाना भी सिखाती है
गिर जाने पर मां गोदी लेती
जीवन का सार बताती है
निडरता का पाठ पढ़ाकर
मां साहस सदा बढ़ाती है
सादा जीवन जीती हरदम
मां बचत करना सिखाती है
मनोरंजक किस्से सुनाकर
बच्चों का मन बहलाती है
अपना जीवन जटिल बनाकर
मां, हमको सफल बनाती है
छोड़ कर मुसीबतों में हमको
मां कभी नहीं, कहीं जाती है
अपना सर्वस्व न्योछावर करके
मां, मकान को घर बनाती है
ताउम्र संघर्ष करती बच्चों के खातिर
उन्हीं बच्चों की मौजूदगी में, ना जाने क्यों?
अंतिम समय में, मां अकेली रह जाती है......।