अंश अंश तुम्हारा।
अंश अंश तुम्हारा।
जब कभी भी,
खाली होता,
ज़हन में,
उसका आना,
लाजमी होता।
उसकी एक एक घटना,
एक श्रंखला की तरह,
दिमाग में चित्रित होती।
चेहरे के हावभाव,
उसके भावों के,
अनुसार बदलते।
अगर वो मुस्कुराती,
तो मुझे सुखद एहसास होता,
सारे दुखों से,
छुटकारा मिलता।
उसकी हंसी,
एक औषधि का काम करती,
मेरा गिरा हुआ मनोवल भी,
आसमान पर पहुंचा देती।
अगर कुछ खटपट लगे,
तो चेहरे के,
बारहां बज जाते,
कुछ खोया सा रहता,
उसका निराश चेहरा,
बार बार,
आंखों के आगे से गुजरता।
हाथ इबादत के लिए,
उठ जाते,
देवी देवता,
सारे याद आ जाते,
मन्नतें मांगता,
जब तक,
उसका चेहरा नहीं खिलता,
मेरा भी मुरझाया रहता।
ये क्रम लगातार चलता,
शरीर का,
कोई भी अंश,
इससे अछूता नहीं रहता।
योनि मैं उसक,
यादों की बारिश में,
भिगोया रहता।