अनंत प्रीति
अनंत प्रीति
लाल जोड़े में सजी प्रीति
कौन जाने उसके हिय रीति
अपना घर छोड़ थामे पिय का हाथ
मना रहे अंत तक रहे हमारा यह साथ
अनंत भी सज्जित जैसे कोई भूप,
सुखद मनोहर आभा ली जैसे कोई रूप.
सप्त फेरों सप्त नियमो में चढ़ा विवाह के रंग
प्रीति अनंत बनी रही है अनंत प्रीति के संग
शादी के उन पुराने चित्रों को देखे पोते उनके संग
पचास वर्षों का यह संबंध फिर से लेगा नवरंग
फिर से प्रीति बन दुल्हन प्रीति के संग आएगी
अनंत भी अनंत प्रेम के संग हर्षित पल जो लाएगी
वहीं पुराने संकोच और उत्सुकता फिर से छा जाएगी
आज पुरानी वही हंसी वहीं वादे सब प्रकट आएगी
अनंत प्रीति का वास अनंत प्रीति में सदा ही विराजेगी।