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Vijeta Pandey

Abstract

5.0  

Vijeta Pandey

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अनन्त प्रेम

अनन्त प्रेम

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प्रिये प्रेम नहीं पत्ते जैसा

जो पतझड़ मे झड़ जायेगा

बरगद का ऐसा वृक्ष है ये

जो सालों तक बढ़ता जाएगा


हृदय का पावन गीत है ये

अन्नात्काल तक गाया जाएगा

सुर की सरिता का मीत है ये

बह सागर में मिल जाएगा

प्रिये प्रेम नही़ पत्ते जैसा

जो पतझड़ मे झड़ जाएगा


स्वेत चान्द्नी का चंद्र है ये

धूमिल नहि कोई कर पायेगा

शंकर और शक्ती का मेल है ये

देवो सा पूजा जाएगा

हम तुम भी जब तारे होगे

ये धरती मे तब भी समाएगा

प्रिये प्रेम नहीं पत्ते जैसा

जो पतझड़ में झड़ जाएगा


रूप और श्रृंगार है ये

मन से मन की पुकार है ये

कृष्णा की मुरली के जैसा

अधरो का अमृत बाण है ये


हर कथा में इसकी, इतिहास है वो

जो युगो तक गाया जाएगा

सखी प्रेम नहीं पत्ते जैसा

जो पतझड़ में झड़ जाएगा

बरगद का ऐसा वृक्ष है जो

सालों तक बढ़ता जाएगा।


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