वो बाज़ार
वो बाज़ार
मेलों सी हर शाम थी,
सजी हर दुकान थी,
जहन हर मंजर दोहराता है
आज वो बाज़ार याद आता है
मिलता था हर सामान जहाँ
जरूरी और कुछ बेवजह
भीड़ की धक्का मुक्की और
बस यूँ ही घूमने का मज़ा
दिल भूल नहीं पाता है
आज वो बाज़ार याद आता है
पैसों के ढेरों वाले या
तंग सिली जेबों वाले
कुछ ना कुछ सभी को मिलता
बच्चों के कपड़े खिलौने,
चाट पकौड़े, रेडी पर बिछौने
सब सोच के मन भर आता है
आज वो बाज़ार बहुत याद आता है
आज के मंजर कुछ ऐसे है
सूरज पर दाग़ के जैसे है
दिन को ना निकले रातों को
कोई पाँव की बेड़ियाँ काटो तो
वायुमंडल सुना है साफ हुआ
फिर मेरा दम क्यूँ घुटता जाता है
आज वो बाज़ार बहुत याद आता है
हे! प्रकृति इतनी दया करना
जब घर से हो मुमकिन निकलना
मुझे सारे पुराने चेहरे वापस मिले
कोई जो ना दिखा तो क्या होगा
ये सोच-सोच मन घबराता है
आज वो बाज़ार बहुत याद आता है