इश्क़
इश्क़
दहलीज़ इश्क़ की पार कर
दो चार कदम ही चले होगें
ठोकर खाकर ज़माने की
हाय! कैसे वो सम्भ्ले होगें
मिट्टी लगे उन हाथों को
कमीज़ पर जब मला होगा
उठे होगे सैलाब आंखो में
हाय! कैसे सब सम्भला होगा
मेरी खुशबू के कुछ सूखे फूल
जब जेबों से निकले होगें
आग यादों की जली होगी
हाय! कैसे वो पिघले होगें
ना तंग करे मेरी यादें उनको
रोज मन्नतें मांगते होगें
रातों को नींद आती भी होगी
या बन्द आंखों में जागते होंगे।