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Vijeta Pandey

Abstract

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Vijeta Pandey

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दिल से पत्थर

दिल से पत्थर

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पत्थर को गुनाहों का

एहसास नहीं होता

खुद से ज्यादा कोई उनका

ख़ास नहीं होता


दवा ये दे, दर्द ये दे

आफत एक जैसी है

मन को कडवा किये बिना

इनका काम नहीं होता

पत्थर को गुनाहों का

एहसास नहीं होता


इबादत या इनायत हो

तलफ तो ये ही करते है

खुदा या नाखुदा हो

कोई इल्जाम नहीं होता

पत्थर को गुनाहों का

एहसास नहीं होता


चांद तारों की बारातो को

ये आफताब कहते हैं

अपनी मर्जी के मालिक है

इल्म-ए-जज्बात नहीं होता

पत्थर को गुनाहों का

एहसास नहीं होता


कैसे कह दूं दर्दो ग़म

मैं अपने साथ में उन्के

संग जिनके मेरी खुशियों का

आग़ाज़ नहीं होता

पत्थर को गुनाहों का

एहसास नहीं होता।


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