अन्नदाता
अन्नदाता
तज सुख दुःख वह
ब्रह्म मुहर्त में नित
खेतो में जाता है,
ठिठुरती सर्दी,
या तपती दुपहरी,
वह मेहनतकश
अन्न उपजाता हैं,
वर्षा का हो मौसम या
सर्दी का ही मौसम हो,
तन मन की कोई पीड़ा हो,
या तपाती बहुत दुपहरी हो,
देखो वी अन्नदाता,
नित भूमि को सींचता हैं,
कर सेवा वह प्रेम भाव से
अन्न वह उपजाता हैं,
उसकी ये बेबसी समझने
न कोई साथ है,
देखो ठिठुरती ठंड में भी उसका
सड़को पर ही वास् हैं,
कैसे चुकता कर पाएंगे,
उस अन्नदाता के कर्ज को हम,
देखो कही भूल न जाये,
अपने अपने फर्ज हम,
ये मेरे चटोरो,ये पिज़्ज़ा,बर्गर
क्या खाओगे,
जब अन्न के दानों को भी
तुम न पा पाओगे,
आज कष्ट में अन्नदाता
और उसका परिवार है,
कुछ न कर सकते तो,
तनिक जरा उनकी बात सुने,
कुछ उनकी भी पीड़ा को,
आज कुछ तो कम करें।।
जय जवान, जय किसान
