ठहाकों को दिल पे मत लेना...!!!
ठहाकों को दिल पे मत लेना...!!!
कुछ करो, तो भी लोग 'कहेंगे' ;
कुछ कर न सको ,
तो भी लोग कहेंगे...
उनका तो 'काम' ही है 'कहना' !
उनके ठहाकों को दिल पे
मत लेना, मेरे भाई विक्टर !!!
लोगों का काम ही है 'कहना'...।
लोगों ने तो मुझ पर भी
कटाक्ष किया था,
जब मैंने निम्न प्राथमिक
एवं उच्च प्राथमिक
दोनों ही वर्गों में
'असम टेट' परीक्षा
उत्तीर्ण होकर भी
सरकारी नौकरी को
नहीं चुना था... ।
मुझे अब भी याद है
कि कुछ लोगों ने
कहा था, "तेरा कुछ नहीं होगा...!"
"तूने सरकारी विद्यालय की नौकरी
न लेकर बहुत बड़ी गलती की है !"
"इस बेसरकारी विद्यालय की
नौकरी करते रहने से
तेरा विवाह भी न हो पायगा...!!"
"तूने बड़ी मूर्खता की है...!!" वगैरह-वगैरह...
अपने कुछ क़रीबी रिश्तेदारों ने मुझसे
(मेरी 'तथाकथित' मूर्खता की वजह से)
दूरभाष यंत्र द्वारा वार्तालाप करना भी
बंद कर दिया था...!
ऐसा व्यवहार किया कि जैसे
केवल 'सरकारी विद्यालयों में
कार्यरत शिक्षक ही' विवाह के योग्य हैं...
और 'हम जैसे' (बेसरकारी संस्था के
विद्यालय में कार्यरत) शिक्षकों को
विवाह के बंधन में बंधना संभव ही नहीं...।
मगर मैं आज भी 'उसी बेसरकारी' संस्था के एक विद्यालय में शिक्षक हूँ...
और मैं विवाहित हूँ...
मुझे आज भी उन ठहाकों की
'गूँज' सुनाई पड़ती है, मेरे भाई विक्टर !!
कुछ लोगो की कटाक्ष
अब भी याद है मुझे...!!!
और मैंने उसी पल
एक 'संकल्प' लिया था
कि मैं 'उन लोगों की'
सरकारी-बेसरकारी नौकरी करनेवालों
की
बेतहाशा तुलनात्मक चर्चाओं पर
मैं एक दिन 'रोक' लगाऊंगा...!!!
और मैंने अपनी 'ज़िद' को पाला,
उन लोगों का 'तिरस्कार' भी स्वीकारा
एवं उन लोगों की
ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये पर अपनी
'जीत की मुहर' लगा ही दी...!!!
अपने 'आत्मसम्मान' को धैर्य एवं
विचार-बुद्धि से बचाया...
और वहीं से मेरी 'जीत'
शुरू होती है, मेरे भाई विक्टर !
आज लोग तुम पर भी कटाक्ष 'करते होंगे'...
ये तो 'उनकी आदत है'... !!!
देख लेना, मेरे भाई विक्टर,
कल जब तुम्हारी अपनी
एक अलग 'पहचान' होगी...
तुम्हारे भी 'चर्चे बेशक़ होंगे'...
तब वो तुम्हारी
'वाह-वाही' भी करेंगे...
ये तो 'नज़रिया है' लोगों का...
ऐसी बातों को दिल पे मत लेना, मेरे भाई विक्टर !
जो आज तुमपे ठहाके लगाते होंगे,
वो मुझपे भी लगाया किए...
इसलिए मैंने उन लोगों से ही
'किनारा' कर लिया...
और आज मैं उन ठहाकों को
अपनी 'आवाज़ बुलंद कर'
अपनी कलम की 'ताक़त' से
चीर के रख देता हूँ...!!!
देखो, मेरे भाई विक्टर !
एक पते की बात करता हूँ...
उन 'कटाक्षों' का,
उन 'ठहाकों' का
तुम 'जवाब ज़रूर देना'...
मगर निःशब्द...!
अपने कर्मों से
ऐसी क्रांति लाना
कि तुम्हारे साथ
ये सारा आकाश जगमगा उठे...!!
सारी धरती हरी भरी हो जाए,
उस 'ऊपरवाले' को
हमेशा याद रखना, मेरे भाई विक्टर !
ये दुनिया अटकलों पर नहीं,
सच्चाई पे टीकी है...
कोई कुछ भी 'सुना दे',
निःशब्द सुन लेना...
मगर अपनी अंतरात्मा की
'दिव्याग्नि' को सदैव
'प्रज्वलित' रखना, मेरे भाई...!!
तुम्हारी 'अच्छाइयों' की
'निस्संदेह' विजय होगी, मेरे भाई विक्टर !!!
तुम्हारे 'ईमान' की 'औकात'
उन ठहाकों से कहीं बेहतर है...!!
उन ठहाकों को दिल पे
मत लेना, मेरे भाई विक्टर !!