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Alka Nigam

Romance

3  

Alka Nigam

Romance

अनकही दास्तान

अनकही दास्तान

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छुपते फिरते रहे

लिखते रहे दिल के कोरे कागज़ पे

अनकही अनसुनी सी दास्तान


एक अजनबी संग गुज़ारे चंद लम्हों की

वो लम्हें जब बोलती थीं

सिर्फ़ दो जोड़ आंखें

सुनाई पड़ता था दिलों की

धड़कनों का आरोह और अवरोह


वो लम्हें जब चाँद कुछ और

बड़ा नज़र आता था

के अमावस में भी वो

मुस्कुराता सा नज़र आता था


जब फ़लक़ पे सितारों की

पाज़ेब थी खनकती

और मोगरे की डाली

झरोखे में चली आती थी


जब काश और आकाश में

फ़ासला हो गया गहरा था

और सुरीली सी ख़्वाहिशों पे

रिश्तों का पहरा था


ऐसी ही कुछ खामोशियों,

चाहतों और हसरतों के

कोहरे में हम छुपते रहे

और ओस की बूंदें बन

एक दूसरे के बगीचे में हम बरसते रहे।


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