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nidhi bothra

Romance

4  

nidhi bothra

Romance

अंजाना सा शहर

अंजाना सा शहर

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अंजाना सा शहर और अंजान लोग थे ,

इस ‌अनजाने शहर में तुम मिले,

खुद को महफूज़ महसूस करने लगी थी,

संग तुम्हारे सब कुछ अपना सा लगने लगा था।

अचानक से ' महजबीं' बन तुम गले मिलकर चले गए,

तुम्हारी 'मदहोशियां' बहुत याद आती हैं।

फिज़ाओं में गूँजती तुम्हारे ' इश्क़' की,

वो "पुरवाईयां" बहुत याद आती हैं।

मीठी मुस्कान लिए तुम्हारी वो भोली सी सुरत ,

तुम्हारी वो 'अच्छाईयां' बहुत याद आती है।

जैसे मुझे बुला रहे हो आँखों से ,

तुम्हारी वो 'खामोशियां' बहुत याद आती हैं।

कोई मुझे दूर से आवाज़ दे रहा है जैसे,

तुम्हारे प्यार की 'शहनाइयां' बहुत याद आती हैं।

फिर से इस अंजाने शहर का वो अंजान रिश्ता,

जो तुम और सिर्फ तुम थे ,मुझे बहुत याद आते हो।



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