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nidhi bothra

Abstract

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nidhi bothra

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बागबान नहीं करता विश्राम

बागबान नहीं करता विश्राम

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बागबान करता नित काम,

श्रम से वो कभी डरता नहीं, 

सुखद मिले परिणाम।। 


बागबान को देख नाचे रहे मोर।

पानी डाले पेड़ पर, 

 सींच रहा वो बाग़। 

भँवरे गुंजन कर रहे, 

 छेड़े राग -मलहार।


कोयल कूके बागों में, 

गाती मीठे गीत। 

बागबान भी चकित है, 

याद करे वो मीत। 


बागबान का श्रम सफल, 

पूरण हुई उसकी आस।

सुगंध चारों ओर फैली है, 

 खिलते रहे गुलाब। 


बागबान को वो कहें, 

 देखो यही जवाब।


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