STORYMIRROR

Saroj Verma

Romance

2  

Saroj Verma

Romance

अन्जाम....

अन्जाम....

1 min
106

वो महफ़िल में आए कुछ इस तरह

जैसे अंधेरे में जल उठे हों चिराग़ कई

देखीं जो झुकती हुई निगाहें उनकी

यूं धड़का जोर से नादां दिल ये मेरा

दोनों में भ्रम कायम है बस यही काफ़ी है

हमने उनसे कहा नहीं, उन्होंने हमसे पूछा नहीं

मन तो किया कि उनकी बंदगी कर लूं

लेकिन होंठों का बंधन खुल ना सका

इज़हार-ए-इश्क हो ना सका, नतीजा ये

हुआ कि अब ये आंखें दिन रात बरसतीं हैं

उसके बाद तो ये आलम रहा कि जिन्दा रहते

हुए, ना वो जिन्दा रहें और हम जिन्दा हैं...!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance