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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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अंधे को दर्पण दिखाना

अंधे को दर्पण दिखाना

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क्या दिखाना अंधे को दर्पण,

वो खुद अटका भटका हैं,

कर सदा दुर्बुद्धि की बाते,

जाल में खुद ही जकड़ा है।

क्या समझाना उसे प्यारो,

जो समझ को मात देता हो।

उपजा कर जो अंधियारे,

अंधकार को रोता हो।

वक्त की एक धार है ऐसी,

स्वतः दर्पण बन जाती है,

अंधा हो या आंखों वाला,

समझ उसे दे जाती है।

वक्त से बड़ा न कोई,

कभी रहा समझाने वाला,

गुरु बन संग संग जो रहता,

ज्ञान यही तो देने वाला,

चलो छोड़ो ज्ञान को अपने,

वक्त की रफ्तार पर,

जो ज्ञान था दूजो को देना,

चलो जरा उस राह पर,

दूर नहीं फिर वह दिन प्यारो,

जब अंधे को दर्पण मिल जाएगा,

जो सिखा न पाए वाणी से,

वो वह, आचरण से सीख जाएगा।



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