अन्दाज़ पुराने
अन्दाज़ पुराने
अन्दाज़ पुराने लेकर के
तुम सपने में आ जाते हो,
कैसे तुमको बतलाऊँ मैं
कैसे मन को समझाऊँ मैं।
तुम तो अपने मन को
समझा लेते हो।
कैसे समझाऊँ मैं
कैसे बतलाऊँ मैं।
अंदाज़ पुराने लेकर के
तुम आ जाते हो,
सपनों में मेरे छा जाते हो
कैसे बतलाऊँ मैं, कैसे समझाऊँ मैं।
अंदाज़ पुराने वे बात पुरानी
वो गया समय आ जाता है,
मुझको बहुत रुलाता है
कैसे समझाऊँ मैं, कैसे बतलाऊँ मैं।
बादल नभ में छाये हैं
मेरा मन अकुलाया है ,
काम छोड़कर बैठी मैं
सपनों में मन खोया है।
यादों के घन छाये हैं
होंठों पर गीत आये हैं ,
कैसे समझाऊँ मैं, कैसे तुम्हें बुलाऊँ मैं
कैसे क्या बतलाऊँ मैं।।