सादगी में भी इतना सँवरती हो तुम
सादगी में भी इतना सँवरती हो तुम
खिल रही गुलमोहर सी गुलशन में तुम
बात क्या है इतना निखरती हो तुम
कितने दिल हैं जले तेरी मुस्कान पे
सादगी में भी इतना संवरती हो तुम
खुली खिड़की पे यूँ लट बिखेरे हुए
बलखाती नज़र से लचकती हो तुम
गिर जायेगा झुमका ये तकरार में
क्यूँ बागों में ऐसे विचरती हो तुम
लाल चूनर जो डाली बदन आज है
जान मेरी दुल्हन सी लगती हो तुम।