अनबन में सुलगते तन बदन
अनबन में सुलगते तन बदन
तू भी है मौन, मैं भी हूं मौन
अब, पहल करे कौन ?
निगाहें यूँ चुरा रहे हो
बच के क्यूँ जा रहे हो
बढ़ के दामन थामे कौन ?
तू भी है मौन ,मैं भी हूँ मौन।
दिल धक-धक कर रहा है
पहल करने से डर रहा है
बैचेन साँसों की आवाज सुने कौन ?
तू भी है मौन, मैं भी हूँ मौन।
मन मेरा भटक सा रहा है
गले में कुछ अटक सा रहा है
बढ़ती धड़कनों को अब सुने कौन ?
तू भी है मौन, मैं भी हूँ मौन।
दूरियाँ तुझे क्यूँ भा रही है
ये बेरूखी हमें खा रही है
ताप मन का अब हरे कौन ?
तू भी है मौन, मैं भी हूँ मौन।
जिन्दगी में मेरी, तुमने ही भरे रगं
नाराजगियों से यूँ ना करो इसे बदरगं
दिल के कैनवास पर,
खुशियों के चित्र उकेरे कौन ?
तू भी है मौन, मैं भी हूँ मौन।
सपने कई देखे हैं तेरे ही सगं
जीवन की शाम ढलने से पहले,
न करो इन्हें भगं
बिन तेरे सपने देखेगा कौन ?
तू भी है मौन, मैं भी हूँ मौन।
देख तो लो एक बार
गर हो जाए एतबार
दे देना स्वीकृति मौन
तू भी है मौन, मैं भी हूँ मौन।
समय यूँ कहीं निकल न जाय
जीवन मोम सा पिघल न जाय
पश्चाताप के आँसू पोंछेगा कौन ?
अगर यूँ ही हम दोनों रहेंगे मौन।
तोड दो चुप्पियों की दीवारें
समझ लो मन के ये इशारे
खुशियों से न करो किनारे
लग भी जाओ गले हमारे।
न तुम रहो मोन न मैं रहूं मौन।
न तुम रहो मौन न मैं रहूँ मौन।।