अनास्था
अनास्था
एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
वेदना मेरी तुम्हारी
वेदना मेरी तुम्हारी।
ज्ञान का अधूरा सपन
नींद में है चल रहे।
सब उठाए अपना-अपना गगन
उच्च आकांक्षाओं के चलते
अधूरी जिंदगी लिए।
भटक रहे हैं सभी धरा पर
अपनी-अपनी आस्था के लिए।
तेरे राम मेरे रहीम
तेरे कृष्णा मेरे
अल्लाह मेरे जीसस
तेरे वाहेगुरु
सबके अपने अपने राम
सबके अपने अपने राम।
इंसानियत का कोई नहीं
इंसानियत का कोई था भी नहीं
इंसानियत का कभी कोई होगा भी नही।
होती रहती है ये तो
यूँ ही गली गली ,,,,, बदनाम।
वेदना मेरी तुम्हारी
वेदना मेरी तुम्हारी।
ज्ञान का अधूरा सपन
नींद में है चल रहे
सब उठाए अपना-अपना गगन।