अमृत महोत्सव
अमृत महोत्सव
चल रहा था अमृत महोत्सव हमारी आजादी का,
खुशीयों की थी बौछार,
सजावट थी बेमिसाल,
लहरा रहे थे तिरंगे हर ओर,
थी छटा निराली।
परन्तु दिल में थी टीस,
आया जिनके कारण यह दिन,
वो तो चढ़ गये थे हँसते-हँसते सूली पर,
खाई गोली सीने पर गांधी ने,
दिखा मार्ग सत्य और अंहिसा का,
सोच कर भी जिन अत्याचारों को,
हो जाते हैं रोंगटे खड़े,
लाखों ने सहे वह अत्याचार रहकर जेल में,
हैं नतमस्तक हम चरणों में सभी आज़ादी के मतवालों के,
खड़े जिनके कारण
आज हम उठाये सिर गर्व से तिरंगे के नीचे,
मना रहे अमृत महोत्सव आजादी का।
जय हिन्द
वन्दे मातरम