अमर गाथा
अमर गाथा
यह वक्त का दौर है गुजर जाएगा ।
वक्त के साए में चलकर तू अपने सफर को पूरा कर,
यह वक्त की ही तो बात है,
कभी वह बाजीगर था, कभी मैं बाजीगर था।
मगर मुझे गुरूर नहीं है बाजीगर होने का,
क्योंकि मुझे मालूम है यह वक्त का दौर है गुजर जाएगा।
कल तक जो मुझसे नफरत किया करते थे,
आज वो मोहब्बत के आंचल बिछा के बैठे हैं।
मगर क्या करूं मैं, ये ज़ालिम गमे सितम ने कांटों की लकीर खींच दी है।
वरना उनके लिए मोहब्बत तो आंखों में मेरे भी है।
सोच कर मुस्कुरा रहा है वो ज़ालिम,
फिजाओं से कह रहा है वो,
यह वक्त का दौर है गुजर जाए।
तुम यूं ना मायूस होकर धरा पर बिखर जाओ,
मंजिल को गर पाने की ख्वाहिश है ।
तो वक्त के दौर में वक्त के साथ ही गुजर जाओ।

