अमावस की रात
अमावस की रात
अमावस की वह रात थी
चारों ओर जब अंधेरा था
दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा था
केवल कीड़े मकोड़े का ही आवाज़ आ रहा था
जब किसी के आने का आहट सुनाई दिया
चारों ओर कोई न था
और चलने का आवाज़ और तेज़ हो रहा था
रात काफ़ी हो चुका था
और बाहर डरावना लग रहा था
फिर भी हम दो पार्क में बैठे थे
और आगे का प्लान बना रहे थे
तभी अचानक ज़ोर से आंधी आई
और हम दोनों हवा में उड़ने लगे
बचाओ-बचाओ करते रहे
लेकिन कोई बचाने वाला न था
तब तक हम दोनों धम्म से नीचे गिरे
और अगले ही पल हम दोनों घर के तरफ़ निकले
पीछे मुड़कर देखने का हिम्मत न था
घर जाकर एक कमरे में छुप गए
पता नहीं आखिर क्या था पर रात बहुत डरावना था।

