अल्हड़ बच्चा
अल्हड़ बच्चा
फिकर ना गम,
की आंधी थी तब,
तब वक़्त बड़ा,
ही अच्छा था।
ना बैर किसी से,
ना झूठ का डर,
तब जिगर बड़ा,
ही सच्चा था।
हर खेल में,
हार हो जाती थी,
तब खेल,
खिलाड़ी कच्चा था।
खिलखिला के,
हँस देता तब,
रोने से भला,
तो अच्छा था।
अपनों की क्या,
ही बात करूँ,
तब वक़्त भी,
एकदम सच्चा था।
इक दौर की बात,
थी वो दौर गया,
जब मैं एक,
अल्हड़ बच्चा था।