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संजय असवाल "नूतन"

Inspirational Others Children

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संजय असवाल "नूतन"

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चूहे की साइकिल(बाल कविता)

चूहे की साइकिल(बाल कविता)

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चूहा राजा बड़े शरारती,

देखें सपने दिन भर,

सोचा एक दिन क्यों न लाऊं,

साइकिल नई अपने घर पर।


बिल्ली बोली, "चूहा भाई,

साइकिल कौन चलाएगा?

छोटे-छोटे तेरे हैं पंजे,

पैडल कैसे घुमाएगा?"


चूहा बोला हंसकर मौसी

"मत डरा मैं कर जाऊंगा,

हिम्मत हो तो कुछ भी मुमकिन,

दुनिया को दिखलाऊंगा।"


बंदर बोला हंसी उड़ा के

साइकिल पर कैसे बैठेगा?

सीट से ऊंचा तेरा सपना,

सपने में ये दौड़ेगा।"


चूहा फिर भी जुटा रहा,

सपनों पर वो अड़ा रहा,

पुराने डिब्बे और टूटी तारों से

खुद की साइकिल गढ़ा रहा।


आखिर आई अब वो शुभ घड़ी,

चूहे की मेहनत रंग लाई,

छोटी साइकिल चमचम करती,

सबने ताली जोर बजाई।


गली गली में चूहा दौड़ा

साइकिल अपनी लेकर

बिल्ली बंदर सब थे हैरान

चूहे की मेहनत देखकर।


सीख मिली सबको इस कहानी से

सपने अपने तुम खुद बनाओ,

हिम्मत और मेहनत से एक दिन

रास्ता खुद ही तुम दिखलाओ।


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