पिता
पिता
जो भी मिलता है घर बार को दे देता हूँ,
या किसी और तलबगार को दे देता हूँ।
धूप को देता हूँ तन अपना झुलसने को,
और साया अपने परिवार को दे देता हूँ।
जो दुआ अपने लिए मांगनी होती है मुझे,
वो दुआ बच्चों को दुलार में दे देता हूँ।
घूँट घूँट कर पी जाता हूँ ख़्वाहिशों के मय,
ज़िम्मेदारियों का बोझ अपने किरदार को दे देता हूँ।
ख़ुद को कर देता हूँ ख़ाक के हवाले,
तस्वीर अपनी घर के दीवार को दे देता हूँ।
बाद मेरे ना ख़ले कमी मेरी ख़ानदान को,
जाते जाते ये ज़िम्मेदारी 'सरकार' को दे देता हूँ।