अज्ञेयवाद
अज्ञेयवाद
बुढ़ापे में हूँ, या जोबन में हूँ,
अब क्या बताऊँ।
भूत या भविष्य,
किसके दर्पण में हूँ ?
अब क्या बताऊँ।
वक़्त से आगे या पीछे चल रहा हूँ,
पता नहीं।
सुलझा हुआ या उलझा हुआ हूँ,
पता नहीं।
ज्ञात नहीं है कुछ भी,
अज्ञात बन गया हूँ।
अबतरी के समंदर का,
चक्रवात बन गया हूँ।
अफरा तफ़री मची थी,
जब बेहोश कभी था मैं।
उलझनों की रातों का,
अब सम्राट बन गया हूँ।
" अज्ञेयवाद " का अनुचर,
विख्यात बन गया हूँ।
नावाक़िफ़ स्वरों का,
शंखनाद बन गया हूँ।