अज्ञान के अंधेरे में गायब
अज्ञान के अंधेरे में गायब
अंधेरे में गायब
पढ़े-लिखे भी फँस जाते,
अंधविश्वास की दीवारों में।
ज्ञान की आँखें बंद कर,
गायब हो जाते अंधेरे के गलियारों में।
धर्म तो सिखाता है जग को,
सही अपनाओ, गलत छोड़ो।
पर हम चुपचाप चलते रहते,
हर रिवाज़ को आँख मूँदकर ओढ़ो।
अगर सभी ने मौन साधा होता,
तो आज़ादी कहाँ से आती?
गुलामी की जंजीरों में ही,
हर पीढ़ी कैद रह जाती।
पूर्वजों ने बिगुल बजाया,
इंकलाब और अहिंसा अपनाई।
गलत का सामना कर डटकर,
धरती ने आज़ादी पाई।
तो क्यों हम अपनी सोच को,
फिर अंधेरे में गायब कर दें?
साहस और जागरूकता से ही,
समाज को उजाले की ओर बढ़ाएँ।
स्वरचित कविता
विमला जैन
