अजनबी से मुहब्बत
अजनबी से मुहब्बत
मुहब्बत भी अजीब होती है पता नही चलता कब हो जाती है,
एक अजनबी से होती है मुलाकात जिदंगी बदल जाती है।
दिल अपनी एक छोटी सी दुनियाँ बसा लेता है अपने इर्द-गिर्द,
उसकी बातों , मुलाकातो,चाहत से जिदंगी संवर जाती है।
अजनबी का साथ दिल को भाने लगता है हद से ज्यादा,
प्यार का अजीब रूख अनजाने में ही मुहब्बत हो जाती है।
इश्क के रंग में रंगने लगती है दुनियाँ ख्वाब सजने लगते हैं,
प्यार की सुगबुगाहट दिल से दिल की कुछ बात होने लग जाती है।
बड़ा घबराता है शरमाता है दिल जब मुलाकात होती है,
दिल में हरदम उन्हीं का नाम जीने की आरजू बढ जाती है।
दिल हर लम्हा उनको ही देखना, सुनना,संग उनके जीना चाहता है,
अजनबी सफ़र पर अजनबी हमसफ़र जिदंगी उनके नाम हो जाती है।
अजनबी की हर बात मन को शहद सी मीठी लगती है,
ज़िक्र जब भी होता है कहीं अधरों पर मुस्कान आ जाती है।
अजनबी अब अजनबी नही रहता उसके नाम की हीना हथेली पर सजती,
हर वक्त खयाल उनका नींद की ऑखों से लुकाछिपी हो जाती हैं।
दिल में उनके दीदार की तड़प एक बार मिलन हो जाये,
चुपके से जिसने दिल चुराया सामने पा निगाहें झुक जाती है।
यही तो मुहब्बत होती है शायद एक अजनबी अपना हो जाता है,
बन जाते है एक दूसरे के जिदंगी बहुत खूबसूरत हो जाती है। ।