अजीब बंधन
अजीब बंधन


एक दिन बैठा था
"दीन" की तरह
शायद मन घायल था
अकेलापन से
रात की चांदनी
रुह को खामोश की
दुखी मन चांदनी रात
की हवा में खोया था !
अचानक मन गतिशील हुआ
किसी छाया से
उसकी सुंदरता
हाय ! मुझे मोह गयी
मन को मानो
मोदक सा छोड़ गयी !
मुक्त हुआ अकेलापन से
लेकिन शीघ्र ही मन वेदना छोड़ गई
उसकी हिटलर चरित्र से जोड़ गई
उसने तो रख ली नैनों की मान
लेकिन साथ ही दुखों से जोड़ गई !
हां शायद उलझन भी
न उसे रोक सके
वाह रे किस्मत
फस गया बेबाकी से
बिना निष्कर्ष
कूद गया बेहोशी से !
अब चांद भी हंस रहा
मेरे बेवकूफी पे
चांदनी भी हँसती
मेरे खामोशी पर !
शायद षड्यंत्र था
उस चांद का
तभी तो फँस गया
उसकी चालाकी भरी जाल में
अब खड़ा तैयार भरा मैं भी
यौवन प्रदर्शन में
आई है चंद्रमुखी
अग्न लिए जीवन मे
कहते हैं तारे सब
फँस भला तू भी अब
प्रेम प्रसंग के दलदल में !
उनकी व्यंग्यात्मक सुर भला सत्य सा
मैं ही तो बना बड़ा प्रेमी दृढ़ता से
इसलिए आई है चंद्रमुखी
प्रतीक बन जीवन में !
पहली मुस्कान शायद
उसकी मुझे मोह गई
तभी तो आज भला
उसकी क्रोधता से जोड़ गई !
अब मैं भी गुलाम परिंदा
चंद्रमुखी के पिंजरे का
इसलिए तो उसके जेलर प्रवृत्ति से जोड़ गई
मेरे आदर्शों को कूड़े में छोड़ गए
और दुविधा में विधा को लोढ़ गए ! !