ऐसा काव्य
ऐसा काव्य
हे कवि, ऐसा काव्य सुनाओ।
जो श्रोता के अन्तःतल में,
देशप्रेम के भाव जगाए।
मानवता के पुष्प खिलाए।।
झाड़ और झंखाड़ उग रहे
जाति-धर्म के संरक्षण में।
नैतिकता का पतन हो रहा
आज समूचे जन गण मन में।
नहीं कोई सुनने वाला अब
देशप्रेम की कथा- कहानी।
वही लेखनी सुनी जा रही
जिसमें हास्य विनोदी वाणी।।
भ्रष्टाचार बसा हुआ है,
छोटे बड़े सभी के मन में।
टूटी कलम सूखती स्याही
असमंजस है मेरे मन में।।
नेता रहे न अब वे नेता
जिनका मैं दे सकूँ मिसाल।
सत्ता के ये भूखे लोमड़,
चलते शकुनि जैसी चाल।।
क्या लिखूँ कुछ समझ न आए
देशप्रेम की अकह कहानी।
चाह लिया जनता ने जिस दिन
बन जाएगी अमर कहानी।।
