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अमीर मीनाई

Romance

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अमीर मीनाई

Romance

ऐ ज़ब्त देख इश्क़

ऐ ज़ब्त देख इश्क़

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ऐ ज़ब्त देख इश्क़ की उन को ख़बर न हो

दिल में हज़ार दर्द उठे आँख तर न हो।


मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब

दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो।


इक फूल है गुलाब का आज उन के हाथ में

धड़का मुझे ये है कि किसी का जिगर न हो।


ढूँडे से भी न मअ'नी-ए-बारीक जब मिला

धोका हुआ ये मुझ को कि उस की कमर न हो।


उल्फ़त की क्या उम्मीद वो ऐसा है बेवफ़ा

सोहबत हज़ार साल रहे कुछ असर न हो।


तूल-ए-शब-ए-विसाल हो मिस्ल-ए-शब-ए-फ़िराक़

निकले न आफ़्ताब इलाही सहर न हो।


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