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क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार

क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार

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क़ैदी जो था वो दिल से ख़रीदार हो गया

यूसुफ़ को क़ैदख़ाना भी बाज़ार हो गया


उल्टा वो मेरी रुह से बेज़ार हो गया

मैं नामे-हूर ले के गुनहगार हो गया


ख़्वाहिश जो रोशनी की हुई मुझको हिज्र में

जुगनु चमक के शम्ए शबे-तार हो गया


एहसाँ किसी का इस तने-लागिर से क्या उठे

सो मन का बोझ साया -ए-दीवार हो गया


बे-हीला इस मसीह तलक था गुज़र महाल,

क़ासिद समझ कि राह में बीमार हो गया.


जिस राहरव ने राह में देखा तेरा जमाल

आईनादार पुश्ते-ब-दिवार हो गया.


क्योंकर मैं तर्क़े-उल्फ़ते-मिज़्गाँ करुँ अमीर

मंसूर चढ़ के दार पे सरदार हो गया.



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